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Carrot cultivation: गाजर की खेती से लाखाें की कमाई कर रहा है यह किसान

Carrot cultivation: बिहार के गया जिले के टनकुप्पा प्रखंड क्षेत्र में गाजर (Carrot) की खेती होती है। इस प्रखंड के करीब 60 एकड़ में गाजर की खेती होती है और किसान सालों से इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र के टनकुप्पा, बरसौना, बरसिमा और ढीबर गांव में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां किसान अशोक किस्म की गाजर उगाते हैं। 90 दिन में यह किस्म तैयार हो जाती है। इसे उगाना कम खर्चीला है और मुनाफा दस गुना से भी ज्यादा होता है। एक कट्ठा की खेती से किसानों को 10-12 हजार रुपये की आमदनी होती है।

Carrot cultivation
Carrot cultivation

एक कट्ठा में पांच क्विंटल तक पैदावार हो सकती है।

अन्य सब्जियों और आलू की तुलना में गाजर एक ऐसी फसल है जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा होता है। गाजर 90 दिन की फसल है जिससे प्रति कट्ठा चार से पांच क्विंटल पैदावार होती है। बाजार में गाजर भी 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक भाव पर बिकती है। इसकी खेती पर किसानों को 500 से 1000 रुपये प्रति कट्ठा खर्च आता है। गया की इस सब्जी मंडी में गाजर की काफी मांग है। इसके अलावा, टनकुप्पा के कई किसान झारखंड के कोडरमा में इसे बेचते हैं।

50 से अधिक खेतों में गाजर (Carrot) उगाई जाती है।

ब्लॉक क्षेत्र में 50 से अधिक किसान गाजर की खेती करते हैं, इनमें से कई महिला किसान हैं। किसान तीन तरह की गाजर उगाते हैं और बाजार में अलग-अलग कीमतों पर बेचते हैं। गाजर की तीन अलग-अलग किस्मों- बड़ी, मध्यम और छोटी- का बाजार मूल्य अलग-अलग है।

गाजर की फसल पकने में तीन महीने का समय लगता है।

गाजर उगाने के बाद किसान खेतों में गरम सब्जी की फसल बोते हैं। यहां किसान बारिश के मौसम में गाजर उगाना शुरू करते हैं। कुछ लोग एक बार तो कुछ दो बार काटते हैं। आज लगाई गई गाजर की कटाई जहां चैत के महीने में होगी, वहीं बारिश के मौसम में लगाई गई गाजर की कटाई अभी की जा रही है।

60 एकड़ में गाजर उगाई जा रही है।

मीडिया से बातचीत में बरसुना गांव के किसान ईश्वर कुमार वर्मा ने बताया कि टनकुप्पा प्रखंड क्षेत्र में गाजर की खेती कई वर्षों से की जा रही है। इसकी खेती मुख्य रूप से टनकुप्पा गांव में की जाती है। इसकी कम लागत और अधिक लाभ के कारण प्रखंड क्षेत्र के कई समुदायों ने इसकी खेती शुरू कर दी है। टनकुप्पा के अलावा बरसुना, ढीबर और बरसिमा गांवों में करीब 60 एकड़ में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

अन्य सब्जियों की तुलना में अधिक लाभदायक होने के साथ ही यह फसल रोग मुक्त भी होती है। इसकी खेती में तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि यहां के किसान गाजर के बाद दूसरी सब्जियां उगाना शुरू कर देते हैं।

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