Winter Crisis: फलों और सब्जियों की फसलों को प्रदूषण से बचाने के लिए करें ये काम
Winter Crisis: उत्तर भारत में, सर्दियों का मौसम कृषि के लिए महत्वपूर्ण होता है। तापमान में गिरावट के कारण इस समय होने वाले वायु प्रदूषण में पर्याप्त वृद्धि से फल और सब्जी (Fruit and Vegetable) की फसलें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती हैं। ठंडी हवा, पराली जलाना, वाहनों का धुआं, औद्योगिक गतिविधि और सतह पर प्रदूषकों का अवरोध सहित कई कारकों से प्रदूषण बढ़ता है। इन चरों से फसल की गुणवत्ता, उत्पादन और स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
फसलों पर प्रदूषण का प्रभाव
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पर प्रभाव
सर्दियों के मौसम में कोहरा और प्रदूषण सूर्य के प्रकाश को ज़मीन तक पहुँचने से रोकता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है। चूँकि वे प्रकाश के बिना अपना पोषण नहीं कर सकते, इसलिए पौधों की वृद्धि और विकास में बाधा आती है।
पत्ती क्षति
वायुमंडल की गैसें, जिनमें सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), और ओजोन (O₃) शामिल हैं, पत्तियों की सतह को नुकसान पहुँचाती हैं। इसके परिणामस्वरूप पतझड़ जल्दी आ जाता है, पत्तियाँ मुरझा जाती हैं और फसलों में क्लोरोफिल की कमी हो जाती है। पौधे पर्याप्त मात्रा में अपना भोजन नहीं बना पाते।
उत्पाद की गुणवत्ता में गिरावट
प्रदूषण से फलों और सब्जियों की गुणवत्ता सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है। पोषक तत्वों की कमी, स्वाद में बदलाव और बाज़ार में मांग में कमी, ये सभी प्रदूषण के कारण होते हैं। इसके अलावा, फलों का आकार, किस्म और रंग अलग-अलग होता है।
कृषि रोगों में वृद्धि
प्रदूषण के कारण वातावरण में ठंडी हवाएँ और नमी का प्रभाव बढ़ता है, जिससे फसलों में बैक्टीरिया और फंगल रोगों (Bacterial and Fungal Diseases) का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, गोभी में डाउनी फफूंद और टमाटर और आलू में लेट ब्लाइट जैसी बीमारियाँ ज़्यादा तेज़ी से फैलती हैं।
पौधों पर तनाव
भारी धातुओं (सीसा, कैडमियम) जैसे प्रदूषकों की उच्च सांद्रता के संपर्क में आने पर पौधे जैविक और शारीरिक (Biological and Physical) दोनों तरह के तनाव का अनुभव करते हैं। उनका विकास चक्र प्रभावित होता है और उत्पादित फलों और सब्जियों की मात्रा कम हो जाती है।
मिट्टी की उर्वरता में कमी
प्रदूषण से ज़मीन और वायुमंडल दोनों प्रभावित होते हैं। वायुमंडल से प्रदूषक मिट्टी (Soil Pollution) पर पड़ने पर उसके pH को बदल देते हैं, जिससे पौधों के लिए पोषक तत्वों को अवशोषित करना मुश्किल हो जाता है।
फल और सब्जियाँ जिनमें विषैले अवशेष होते हैं
प्रदूषण के परिणामस्वरूप फल और सब्जियाँ मिट्टी और पर्यावरण से विषैले पदार्थों को अवशोषित करती हैं। इसलिए वे मनुष्यों के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
फसल सुरक्षा रणनीतियाँ: मल्चिंग, जैविक खाद और नेट हाउस जैसी रणनीतियों का उपयोग करके फसलों को प्रदूषण के प्रभावों से बचाया जा सकता है।
पत्ती की सफाई: पत्तियों पर पानी छिड़का जा सकता है ताकि उनकी सतह पर जमा धूल और अन्य दूषित पदार्थ हट जाएँ।
रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास: प्रदूषण और रोग प्रतिरोधी फसल प्रकारों का उपयोग करके फसल उत्पादन (Crop Production) को बढ़ाया जा सकता है।
हरित पट्टी निर्माण: खेतों के चारों ओर हरित पट्टी बनाकर, प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखना: वनीकरण को प्रोत्साहित करके, जैविक खाद का उपयोग करके और पराली जलाने से बचकर प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
किसानों को सूचित करें
किसानों को विभिन्न माध्यमों से चेतावनी दी जानी चाहिए कि वे पराली न जलाएँ क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी धीरे-धीरे खराब हो जाती है और शुष्क हो जाती है। मिट्टी में जितने ज़्यादा सूक्ष्मजीव (Microorganisms) होंगे, वह उतनी ज़्यादा जीवित होगी। मृत मिट्टी को खाद देने के फ़ायदे पूरी तरह से महसूस नहीं किए जा सकते, चाहे कितनी भी बाहरी खाद का इस्तेमाल किया जाए।