Wheat Yellow Leaves Problem: गेहूं के पीले पत्तों से छुटकारा पाने के लिए आजमाएं ये चमत्कारी उपाय
Wheat Yellow Leaves Problem: सर्दियों में गेहूं की फसल की निचली पत्तियों का पीला पड़ना एक आम समस्या है, खासकर तब जब तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। 25 दिसंबर के आसपास, यह समस्या उत्तर भारत में ज़्यादा देखने को मिलती है, खासकर उन इलाकों में जहाँ पराली जलाई जाती है। ठंड के कारण मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव निष्क्रिय (Microorganisms inactivated) हो जाते हैं। जब सूक्ष्मजीव काम करना बंद कर देते हैं, तो पौधों को ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे पत्तियाँ पीली हो जाती हैं। ठंड से बचने के लिए सावधानी बरतने, पोषक तत्वों का सही तरीके से प्रबंधन करने और पराली जलाने (Stubble Burning) से बचने से इस समस्या को कम किया जा सकता है।
गेहूं की पत्तियों के पीले होने के कारणों और उपायों के बारे में जानें
गेहूं की पत्तियों के पीले होने का क्या कारण है?
- सूक्ष्मजीवों की कम गतिविधि: ठंड के कारण मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि कम हो जाती है। ये सूक्ष्मजीव पौधों की पोषक तत्व प्राप्त करने की क्षमता के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं।
- नाइट्रोजन की कमी: ठंड के मौसम में नाइट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है। पौधे के ऊपरी हिस्सों में नाइट्रोजन के स्थानांतरित होने के कारण निचली पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं।
- पानी का रुकना: सिंचाई के बाद खेत में पानी का रुकना जड़ों को नुकसान पहुंचाता है और पोषक तत्वों को अवशोषित होने से रोकता है।
- पराली जलाने से मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों की मात्रा कम हो जाती है, जिससे फसल की पोषण क्षमता कम हो जाती है।
समस्याओं का समाधान
- समय पर बुवाई: ठंड के प्रभाव को कम करने के लिए, अक्टूबर के अंत और 15 नवंबर के बीच बुवाई करें।
- सिंचाई का प्रबंधन: जलभराव से बचें और 20 से 25 दिन बाद प्रारंभिक सिंचाई करें। इसके अतिरिक्त, सिंचाई से ठंडी शामों में पाले का प्रभाव कम होता है।
- उर्वरकों का छिड़काव करते समय जिंक सल्फेट और नाइट्रोजन (Zinc Sulphate and Nitrogen) की संतुलित मात्रा का उपयोग करें। पौधों को 1% यूरिया के साथ पत्तियों पर छिड़काव करके हरा-भरा रखा जा सकता है।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें: HD-2967 और PBW-343 पीले रतुआ और अन्य रोगों के प्रतिरोधी हैं।
- जैविक उर्वरकों का उपयोग: ट्राइकोडर्मा और वर्मीकम्पोस्ट जैविक (Trichoderma and Vermi Compost Organic) प्रथाओं के दो उदाहरण हैं जो मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते हैं।
कृषि अपशिष्टों को न जलाएं
किसानों को गेहूं बोने से पहले पिछली फसल के बचे हुए अवशेषों को कभी नहीं जलाना चाहिए क्योंकि इससे जमीन बंजर हो जाती है। पराली को सड़ाने के लिए डीकंपोजर (Decomposer) का इस्तेमाल करें और फिर उसे जलाने के बजाय मिट्टी में मिला दें। नतीजतन, मिट्टी अधिक उपजाऊ हो जाती है और उसमें अधिक सूक्ष्मजीव होते हैं।
जागरूकता और अवलोकन महत्वपूर्ण हैं
किसानों को पोषक तत्वों की कमी के लिए मिट्टी की जांच करनी चाहिए और अपनी फसलों पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए। एकीकृत पोषण प्रबंधन (IPM) का उपयोग करके, गेहूं की पत्तियों के पीलेपन की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।