Strawberry Cultivation: इस फल की खेती से किसानों को हो रही है तगड़ी कमाई
Strawberry Cultivation: बिहार की कृषि पद्धतियां लगातार विकसित हो रही हैं। आजकल, पारंपरिक फसलों के बजाय नकदी फसलों की खेती पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। किसानों के बीच राजस्व फसल के रूप में फलों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसका असर बिहार के औरंगाबाद जिले पर भी पड़ रहा है। औरंगाबाद क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में सैकड़ों किसान बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं। जिले के ओबरा प्रखंड, जिसे कभी ‘धान का कटोरा’ कहा जाता था, के किसान पारंपरिक खेती से हटकर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। इस फल की पैदावार से किसानों को काफी आमदनी भी हो रही है।
पंद्रह बीघे में स्ट्रॉबेरी (Strawberry)की खेती
ओबरा प्रखंड के शंकरपुर गांव के किसान मिथलेश कुमार पिछले 20 सालों से यहां सब्जियां उगा रहे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों से वे यहां सब्जियों के अलावा स्ट्रॉबेरी भी उगा रहे हैं। किसान के मुताबिक, वे पंद्रह बीघे में स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं। इससे उन्हें हर साल करीब 10 लाख रुपये की आमदनी होती है। किसान का दावा है कि स्ट्रॉबेरी का पौधा एक सीजन में तीन गुना से अधिक फल देता है, जिससे लागत से तीन से चार गुना अधिक मुनाफा होता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती की तकनीक
किसान मिथलेश के अनुसार स्ट्रॉबेरी के पौधे हरियाणा से मंगवाए जाते हैं, जिनकी कीमत चार से पांच रुपए होती है। एक कट्ठा में एक साथ करीब 2,000 पौधे रोपे जाते हैं। आपको बता दें कि स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए बलुई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। स्ट्रॉबेरी की मेड़ बनाई गई है और वहां पानी की पाइपलाइन बिछाई गई है, ताकि पौधे को कभी-कभी पानी मिल सके। स्ट्रॉबेरी दिसंबर या जनवरी में पक जाती है और सितंबर से अक्टूबर तक उगाई जाती है।
जितनी लागत लगती है, उससे तीन गुना ज्यादा पैदावार होती है।
आपको बता दें कि किसान द्वारा पौधे से स्ट्रॉबेरी की कटाई करने पर इसका जीवनकाल सिर्फ 72 घंटे का होता है। किसान स्ट्रॉबेरी की कटाई करता है, उसे पैक करता है और पटना, बनारस और कोलकाता भेजता है। किसान मिथलेश के अनुसार स्ट्रॉबेरी की कीमत 350 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकती है, यानी किसान जितना खर्च करता है, उससे ज्यादा कमाता है।