Lentil Crop Cultivation: मसूर की फसल की बुवाई के वक्त किसान कर लें ये प्रबंधन
Lentil Crop Cultivation: दलहनी फसलों में किसान रबी सीजन में बड़े पैमाने पर मसूर (Lentil) की खेती करते हैं। मसूर की फसल किसानों को कम लागत में अधिक उपज देती है। मसूर की फसल की खासियत यह है कि इसे बहुत कम पानी की जरूरत होती है। सही समय पर मसूर की फसल बोने पर 110-140 दिन में 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल जाती है। इसके अलावा मसूर की फसल से करीब 30 से 35 क्विंटल पशु आहार मिलता है, फिर भी मसूर की फसल को उकठा रोग काफी नुकसान पहुंचाता है।
ऐसे में मसूर की फसल की बुआई के समय उकठा रोग पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर के कृषि विशेषज्ञ डॉ. एनपी गुप्ता के अनुसार मसूर की फसल में उकठा रोग एक खतरनाक स्थिति है, जो पौधे की जड़ों को नुकसान पहुंचाती है। मिट्टी में उगने वाला एक खास तरह का फंगस इस बीमारी का स्रोत है।
यह फंगस पौधे की जड़ों को संक्रमित कर पौधे को पोषक तत्व और पानी सोखने से रोकता है। इस बीमारी के कारण पौधे धीरे-धीरे सूखकर मुरझा जाते हैं। पौधे की निचली पत्तियां सबसे पहले पीली हो जाती हैं। तने या जड़ के कट जाने पर पौधे के अंदर का भाग भूरा हो जाता है। समय के साथ पौधा सूखकर मुरझा जाता है।
मसूर (Lentil) के बीजों को उपचारित करने के बाद उन्हें रोपें।
इस बीमारी से फसल को बचाने के लिए बीजों को उपचारित करना बहुत जरूरी है। बीजों को उपचारित करने के बाद ही मसूर की फसल लगाई जा सकती है। उन्हें ठीक करने के लिए प्रति किलोग्राम बीज पर तीन ग्राम थाइरम का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, किसी भी व्यवस्थित कीटनाशक से उपचार करें।
इसके अलावा, मिट्टी का उपचार भी बहुत जरूरी है।
मसूर की फसल को स्वस्थ रखने के लिए मिट्टी का प्रबंधन भी जरूरी है। क्योंकि फंगस इस बीमारी का कारण है। ऐसे में जब खेत की गहरी जुताई हो जाए तो ट्राइकोडर्मा को गोबर की खाद (Cowdung manure for Trichoderma) के साथ मिलाकर फैला दें। फिर, जमीन को समतल करने के लिए पट्टा का इस्तेमाल करें और मसूर की फसल लगाएं।
दूषित पौधों को हटा दें।
यदि मसूर की फसल में बुवाई के बाद विल्ट रोग के लक्षण दिखाई दें, तो रोगग्रस्त पौधे को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें। ऐसा करने से रोग का प्रसार सीमित हो जाएगा और बची हुई फसल सुरक्षित रहेगी।
राइजोबियम का प्रयोग करें
किसानों को अपनी मसूर की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए राइजोबियम का भी प्रयोग करना चाहिए। राइजोबियम नामक एक विशेष प्रकार का जीवाणु फलीदार फसलों की जड़ों में गांठें बनाता है। ये गांठें वातावरण से नाइट्रोजन खींचती हैं और इसे पौधे द्वारा अवशोषित करने के लिए तैयार करती हैं। चूंकि नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है, इसलिए यह पौधों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। राइजोबियम का प्रयोग करने के बाद किसानों को अलग से नाइट्रोजन डालने की आवश्यकता नहीं होगी।
एक प्रणालीगत कीटनाशक का प्रयोग करें।
किसानों को रोग की रोकथाम और उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए मसूर की फसल पर प्रणालीगत कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से मसूर की फसल बीमारियों से सुरक्षित रहती है और यदि वे होती भी हैं, तो फसल को गंभीर नुकसान नहीं होता है।