Green Manure: भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए किसान इस खाद का करें प्रयोग
Green Manure: किसानों को खेती करते समय भूमि की उर्वरता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अधिक उपजाऊ भूमि से फसल की उत्पादकता बढ़ती है। हरी खाद किसानों को अपनी मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में मदद कर सकती है। कृषि विशेषज्ञ किसानों को सलाह देते हैं कि वे मिट्टी में सल्फर और जिंक सल्फेट (Sulfur and Zinc Sulphate) की कमी को दूर करने के लिए ढैंचा की खेती करें और हरी खाद का उत्पादन करें। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे खेत में जैविक तत्वों (Biological Elements) की मात्रा बढ़ेगी। अगर किसानों को धान की फसल लगानी ही है तो वे अपने खेतों में ढैंचा की खेती कर सकते हैं। इसी वजह से, ढैंचा जैसी कई तिलहनी फसलें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए अप्रयुक्त क्षेत्रों में उपयोगी हैं।
वास्तव में, हरी खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जोड़ने और उसके पोषण स्तर (Nutritional level) को बढ़ाने के लिए डाली जाती है। उत्तर प्रदेश देश भर में सबसे अधिक रासायनिक खादों के इस्तेमाल वाले राज्यों में से एक है। यही वजह है कि खेतों में रासायनिक खादों का लापरवाही से इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे सल्फर और जिंक सल्फेट की कमी भी होती है। इस बात से चिंतित कृषि विशेषज्ञ ढैंचा की फसल लगाकर इस कमी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
कब लगाएं हरी खाद
हमारे देश में कई तरह की जलवायु पाई जाती है। हर किसी को अपनी भौगोलिक स्थिति (Geographical location) के अनुसार फसल का चयन और रोपण करना चाहिए। बारिश के बाद फसल को तुरंत बो देना चाहिए। अगर जमीन में सिंचाई की सुविधा है तो बारिश का मौसम शुरू होने से पहले हरी खाद लगा दें। हरी खाद के लिए फसल लगाते समय ध्यान रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
ढैंचा उन्नत किस्में
- सी. एस. डी. 137
- सी. एस. डी. 123
- पन्त ढैंचा – 1
- पंजाबी ढैंचा – 1
- हिसार ढैंचा – 1
हरी खाद बनाने की प्रक्रिया
• गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल से मई के बीच ढैंचा के बीज को पानी में फैला दें और जमीन की सिंचाई करें।
• दस से पंद्रह दिन बाद ढैंचा की फसल में हल्की सिंचाई करें।
• लगभग 20 दिन में खेत में प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम यूरिया डालें। इससे गांठों का विकास आसान हो जाता है।
• लगभग 55 से 60 दिन में खेत की जुताई करें। बीज बिखेर दें।
जुताई के बाद इसके लिए सबसे पहले बीजों को फैलाया जाता है। ढैंचा हरी खाद के लिए एक हेक्टेयर में 60 किलो बीज की जरूरत होती है। मिश्रित फसलों के लिए प्रति एकड़ 30 से 40 किलो बीज काफी होता है। असल में इससे किसानों को काफी फायदा होता है। ढैंचा के पौधों से भी हरी खाद बनाई जाती है। हरी खाद तब बनती है जब हरे पौधों को बिना सड़ें जमीन में जोत दिया जाता है, जिससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और नाइट्रोजन (Organic Matter and Nitrogen) की मात्रा बढ़ जाती है।
ढैंचा से हरी खाद
• हरी खाद देने के लिए ढैंचा को बारिश के मौसम में फैलाया जाता है।
• किसी भी तरह की मिट्टी और वातावरण इसके पौधे की वृद्धि में सहायक हो सकता है।
• इसकी खेती के लिए जलभराव वाले स्थानों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। क्योंकि 60 सेमी पानी में भी इसका पौधा आसानी से उग जाता है।
ढैंचा के विभिन्न प्रकार
- पंत ढैंचा।
- ढैंचा हिसार डेढ़ से दो महीने में इन दोनों प्रकार के ढैंचा से मिट्टी में उच्च गुणवत्ता (High Quality) वाली हरी खाद डाली जा सकती है। हरी खाद की कटाई इसके पौधों को 4 से 5 फीट की लंबाई होने पर डिस्क हल से खेत में ही काट दिया जाता है। इस तरह खेत में हरी खाद तैयार हो जाती है।
मिट्टी के लिए ढैंचा खाद के फायदे
• खेती के एक से डेढ़ महीने बाद मिट्टी में 85-100 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20-25 टन हरी खाद होती है। नतीजतन, खेत की प्रजनन क्षमता काफी बढ़ जाती है।
• खेत में हरी खाद पैदा करने से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।
• इसके अलावा मिट्टी में हवा का आवागमन भी पर्याप्त होता है।
• भूमि की अम्लीयता, क्षारीयता और जल धारण क्षमता सभी में सुधार होता है।
• हरी खाद के उत्पादन से खेत में मिट्टी का कटाव कम होता है।
• हरी खाद डालने से मिट्टी में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की मात्रा और सक्रियता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप, मिट्टी की उर्वरता क्षमता बढ़ जाती है।
• मिट्टी जनित बीमारियों में कमी आ रही है। इससे किसानों को अपनी फसलों के लिए कृत्रिम उर्वरकों पर कम खर्च करना पड़ेगा।
भूमि के लिए लाभ
ढैंचा और सनई की खेती से भूमि पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन सभी फसलों की जड़ों में कई तरह की गांठें होती हैं, जिनमें कई तरह के बैक्टीरिया (Bacteria) होते हैं। ये वातावरण से नाइट्रोजन को हटाने के बाद धरती के अंदर बस जाते हैं। इन फसलों के पौधे फिर मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरता बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
ढैंचा कैसे लगाया जाता है
इस तरह की फसल एक फलीदार फसल है। यह हर तरह की मिट्टी और वातावरण (Soil and Atmosphere) में पनपती है। साथ ही, यह 60 सेमी तक के जलभराव को आसानी से झेल सकती है। ऐसी परिस्थितियों में ढैंचा के तने की जड़ें जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती हैं। तेज हवा के झोंकों में भी यह इसे गिरने से बचाती है। एक बार अंकुरित होने के बाद यह सूखे को पूरी तरह से झेल सकती है। नमकीन और क्षारीय मिट्टी पर भी यह फसल फलती-फूलती है। ढैंचा 45 दिन में 85-100 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20-25 टन हरी खाद देता है। धान और सोयाबीन की फसल लगाने से पहले ढैंचा को पलटने से खरपतवार पूरी तरह खत्म हो जाती है।
हरी खाद के फायदे
- यह मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाती है।
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
- सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
- फसल की जड़ें उचित रूप से फैलती हैं।
- हरी खाद के सड़ने से, जिससे प्राथमिक फसल के पौधे आसानी से विकसित होते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड गैस (Carbon Dioxide Gas) निकलती है।
- ढैंचा की फसल की अच्छी पैदावार होने के कारण किसान इसके बीज बाजार में बेचकर अच्छा खासा पैसा कमा लेते हैं।
- इस फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
- यह फसल प्रति हेक्टेयर जमीन से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन देती है।
- इस फसल की खेती किसी भी तरह की ज़मीन पर और सूखी और गीली दोनों तरह की जलवायु में की जा सकती है।
- ढैंचा की फसल हमें हरी खाद प्रदान करती है।
ढैंचा का उपयोग और महत्व
ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो 45 दिनों में उगती है। ढैंचा की फसल (Dhaincha Crop) तैयार करने के लिए पाँच से छह गर्मियों की सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिसके बाद धान की फसल बोई जा सकती है। ढैंचा की फसल प्रति हेक्टेयर मिट्टी में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन देती है। ढैंचा को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है अगर इसे जुलाई या अगस्त में बोया जाए और 45-50 दिन बाद खेत में गाड़ दिया जाए। उसके बाद गेहूं या अन्य रबी की फसलें उगाई जा सकती हैं।
ढैंचा की फसल सभी तरह की मिट्टी और सूखी और गीली दोनों तरह की जलवायु में उगाई जा सकती है। केवल जलमग्न मिट्टी पर ही यह 1.5-1.8 मीटर की ऊँचाई तक पहुँच सकती है। 60 सेमी पानी में यह एक सप्ताह तक टिक सकती है। अगर मिट्टी का पीएच 9.5 है, तो भी इसकी खेती की जा सकती है। इसलिए यह क्षारीय और लवणीय मिट्टी (Alkaline and Saline Soils) को बढ़ाने के लिए आदर्श है। अगर मिट्टी का पीएच 10-5 है तो इस फसल की खेती जिप्सम या लीचिंग से की जा सकती है। इस फसल से 45 दिनों में लवणीय मिट्टी को 200-250 क्विंटल कार्बनिक पदार्थ मिल सकता है।