Chickpea crop: चने की फसल में बढ़ गया है कीड़े का प्रकोप, तो अपनाएं यह देसी तरीका
Chickpea crop: खरगोन जिले में कृषि आय बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है। यहां रबी सीजन में किसान ज्यादातर गेहूं, मक्का और चना उगाते हैं। इस क्षेत्र में 70 हजार हेक्टेयर से ज्यादा चना है। खेतों में अब बुवाई हो रही है। सिंचाई के लिए लगातार दौरे हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि चने में फूल आने के समय ही कीट महामारी (chickpea caterpillars) आती है। इससे बचने के लिए किसानों को पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। नहीं तो फसल बर्बाद हो जाएगी।
खरगोन कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. जीएस कुल्मी कहते हैं कि किसान फेरोमोन और नाइट ट्रैप का इस्तेमाल करके या जैविक दवाओं का छिड़काव करके फसलों को कीटों के प्रकोप से बचा सकते हैं। लेकिन इसकी कीमत ज्यादा है। वहीं, खेतों में इल्लियों के प्रबंधन के लिए स्थानीय तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें बुवाई के समय मक्का के पौधे लगाना या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद खेतों में पेड़ के आकार की खूंटियां गाड़ना शामिल है। इल्लियों के प्रबंधन का यह सबसे सरल और किफायती तरीका है।
एक एकड़ में कितनी खूंटियाँ लगानी चाहिए?
किसान फसलों में कैटरपिलर को नियंत्रित करने के लिए दो देशी तकनीकों का भी उपयोग कर सकते हैं। पहली विधि में किसान अपने चने (chickpea) के खेतों में अलग-अलग जगहों पर लकड़ी के टी-आकार के खूंटे लगाते हैं। एक एकड़ में करीब 20 खूंटियाँ लगाएँ। इससे कैटरपिलर खाने वाले पक्षी खूंटियों पर बैठेंगे और पौधे पर कीड़ा देखते ही उसे खा जाएँगे।
कम लागत, बढ़ी हुई आय
हालाँकि, दूसरी विधि में किसानों को चने की फसल के बीच में मक्के के पौधे लगाने होते हैं। अनाज खाने के लिए पक्षी मक्के के इन पौधों पर भी बैठते हैं। हालाँकि, अगर उन्हें चने के पौधों पर कैटरपिलर दिखाई देते हैं तो वे तुरंत उन्हें खत्म कर देते हैं। ऐसा करने से, महंगे फसल-कीटनाशकों का उपयोग किए बिना ही फसलों को कैटरपिलर के हमलों से बचाया जा सकता है। साथ ही, दो फसलें होने से ज़मीन को फ़ायदा होगा।