AGRICULTURE

Cultivation of Black Urad: गेहूं की कटाई के बाद करें इस फसल की खेती, तीन महीने में होगी खूब कमाई

Cultivation of Black Urad: पारंपरिक खेती और पोषण को बढ़ावा देने के नजरिए से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों, खासकर बागेश्वर जैसे जिलों में भट्ट (काली उड़द) का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। भट्ट की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मई या जून में माना जाता है, जो गेहूं की कटाई के तुरंत बाद होता है। भट्ट, एक पारंपरिक दाल (Traditional Dal) है, जिसकी मांग शहरों और गांवों दोनों में तेजी से बढ़ रही है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इसमें खनिज और प्रोटीन भी भरपूर मात्रा में होता है।

Cultivation of black urad
Cultivation of black urad

कम खर्च में अधिक आय

स्थानीय किसान इसे कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल मानते हैं। क्योंकि इसमें पानी का ठहराव कम होता है और भट्ट की जड़ें आसानी से फैलती हैं, इसलिए हिमालय के ढलान वाले खेत इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। खेती में सबसे पहले जमीन की गहरी जुताई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद भी डाली जाती है। मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) बनाए रखने से बेहतर उत्पादकता मिलती है।

भट्ट के बीजों को बोने से एक दिन पहले पानी में भिगोने से उनकी अंकुरण दर बढ़ जाती है। पौधों को विकसित होने के लिए पर्याप्त जगह देने के लिए बीजों को 25 से 30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में लगाया जाता है। इसमें ज्यादा रख-रखाव की जरूरत नहीं होती और पानी की भी बहुत कम जरूरत होती है। इससे छोटे और सीमांत किसानों को भी फायदा होता है।

यह फसल झटपट हो जाती है तैयार

तीन से चार महीने में भट्ट की फसल तैयार हो जाती है। कटाई के बाद इसका इस्तेमाल दालें, सब्जियां और उत्तराखंड का मशहूर और सेहतमंद पारंपरिक व्यंजन भट्ट की झोली बनाने में किया जाता है। सरकारी और निजी दोनों ही बाजारों में इसकी अच्छी कीमत मिलने की वजह से किसान इसे नकदी फसल के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं।

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, किसान अगर समय पर फसल बोएं और उसकी उचित देखभाल करें तो उन्हें प्रति बीघा अच्छी पैदावार मिल सकती है। इस लिहाज से पहाड़ के किसान एक बार फिर भट्ट की खेती को उम्मीद की नई किरण के तौर पर देख रहे हैं। समय पर फसल बोकर, जैविक खेती (Organic Farming) के तरीकों का इस्तेमाल करके और पारंपरिक ज्ञान को मिलाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा वे पहाड़ की खेती की परंपरा को भी बचा सकते हैं।

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