Natural farming: जैविक खेती से किसानों को मिल रहा है आर्थिक लाभ का तोहफा
Natural farming: मेहसाणा, गुजरात के किसानों के बीच जैविक खेती अब लोकप्रिय हो रही है। उन्हें राज्य सरकार का भी पूरा समर्थन प्राप्त है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रति एकड़ 20,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। पूरे वर्ष किसानों को विभिन्न प्रकार की प्रगतिशील और पारिस्थितिक कृषि तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसका लक्ष्य है कि किसान अपने माल को आसानी से बाजार में बेच सकें और जैविक तरीके से खेती करके अपने उत्पादों का मूल्य बढ़ा सकें।
रासायनिक खेती के नकारात्मक प्रभाव और जैविक खेती की आवश्यकता
रासायनिकों के लापरवाही से उपयोग से कृषि और मानव स्वास्थ्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की बढ़ती संख्या ने जैविक वस्तुओं की मांग में तेज वृद्धि की है। अगर किसान ऐसे परिदृश्य में प्राकृतिक खेती का उपयोग करते हैं, तो उनकी फसलें आसानी से बिकेंगी और उनका भोजन स्वास्थ्यवर्धक होगा। इसके अलावा, बीमारियों का प्रचलन कम हो सकता है।
जैविक खेती (Natural farming) के तकनीकी पहलू
जैविक खेती में, रोपण चरण के दौरान विशेष ध्यान दिया जाता है। फसल की सिंचाई करते समय, प्रति एकड़ 200 लीटर जैविक जल को हरी खाद, जैसे कि उड़द, मूंग, ढैंचा या अन्य दालों के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद, मिट्टी को हल्का और महीन बनाया जाता है और उसमें पर्याप्त जल निकासी होती है। अंतिम रोपण के समय खेत की दरारों में 400 किलोग्राम ठोस खाद डालना चाहिए।
बीज बोने और उसे समृद्ध करने की प्रक्रिया
सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के लिए बीजों में “बीजामृत” मिलाया जाता है। बीजामृत में सामान्य बीजों को 6-7 घंटे और विशेष बीजों को 12-13 घंटे तक भिगोएँ। इस प्रक्रिया का पालन करते हुए, टिंडोरा और करेला जैसे बीजों को बोने से पहले छाया में सुखाया जाता है। यह सुनिश्चित करके कि बीज अच्छी तरह से अंकुरित होते हैं, इस संवर्धन से उपज में सुधार होता है।