Natural farming: इस खेती से बढ़ेगी किसानों की आय, जानें कैसे…
Natural farming: बीमारियों से बचने के लिए जरूरी है कि हम अपने पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्राकृतिक खेती (Natural farming) करें। इस कड़ी में पूरे भारत में हुई प्राकृतिक कृषि क्रांति से हिमाचल प्रदेश भी अछूता नहीं रहा है। आयुष युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री यादवेंद्र गोमा के अनुसार, किसानों और बागवानों के जीवन स्तर और आय में सुधार लाने के प्रयास में राज्य सरकार ने चालू वित्त वर्ष में प्राकृतिक खेती के विकास के लिए 15 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि लागत कम करने और राजस्व व उत्पादन बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास करके राज्य सरकार प्राकृतिक खेती (Natural farming) को बढ़ावा दे रही है। प्राकृतिक खेती में पर्यावरण और लोगों को रासायनिक खेती के नकारात्मक परिणामों से बचाना शामिल है। साथ ही, जहां कृषि लागत कम हो रही है, वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। उन्हें यह पसंद आया कि समूह किसानों को पारिस्थितिक खेती के बारे में शिक्षित करने के लिए शिविर लगा रहा है।
प्राकृतिक खेती (Natural farming) अधिक लागत प्रभावी और बेहतर विकल्प है।
उन्होंने कहा कि समकालीन वस्तुओं में रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण रसायनों की मात्रा बढ़ गई है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए प्राकृतिक खेती अधिक लागत प्रभावी और बेहतर विकल्प है। मंत्री ने सभी से प्राकृतिक खेती के लिए अपना समर्थन बढ़ाने और आसपास के समुदायों के निवासियों को इसके बारे में शिक्षित करने का आग्रह किया। आपको बता दें कि राज्य सरकार किसानों से प्राकृतिक खेती से उगाए गए गेहूं को 40 रुपये प्रति किलोग्राम और मक्का को 30 रुपये के समर्थन मूल्य पर खरीद रही है।
उनके अनुसार, राज्य के 1508 किसानों ने 398 मीट्रिक टन प्राकृतिक खेती से उगाए गए मक्के को बेचा है। उनके अनुसार, सरकार ने इस अधिग्रहण के माध्यम से हिमभोग ब्रांड से हिम मक्की आटा बाजार में उतारा है। राज्य सरकार ने गाय और भैंस के दूध का क्रय मूल्य 45 रुपये और 55 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया है। इससे पहले आयुष मंत्री ने करीब 8 लाख रुपये में दूध खरीदा था।
आपको याद दिला दें कि सुभाष पालेकर ने 2018 में हिमाचल प्रदेश में 35,000 हेक्टेयर भूमि पर अपनी प्राकृतिक खेती पद्धति का उपयोग करना शुरू किया था। प्राकृतिक खेती के तरीकों का उपयोग करते हुए, उस अवधि के दौरान, पहले वर्ष में ही 628 हेक्टेयर भूमि पर फसलें उगाई गईं। इसके बाद, किसानों ने तेजी से प्राकृतिक खेती को अपनाना शुरू कर दिया।