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Success Story: विदेश की नौकरी छोड़कर किसान ने शुरू की इस चीज की खेती, लाखों में हो रही है कमाई

Success Story: झारखंड का हजारीबाग इलाका अपनी खेती के लिए मशहूर है। इनमें से कई किसान अब खेती को उद्योग के स्तर पर ले जाने के लिए काम कर रहे हैं। यहां कई लोग बड़े पैमाने पर खेती करते हैं। इनमें से एक हैं रूपेश कुमार, जिन्होंने विदेश में अपनी नौकरी छोड़कर खेती को अपना करियर बनाया। इसके अलावा, वे चालीस अतिरिक्त कर्मचारियों को काम पर रख रहे हैं।

Success Story
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रूपेश ने संवाददाताओं को बताया कि आईटीआई के बाद उन्होंने पूरे देश में काम किया। इसके बाद उन्हें म्यांमार में वर्कशॉप इंजीनियर के तौर पर नौकरी मिल गई, जहां उन्होंने दो साल बिताए। कोरोना काल में भारत लौटने पर उन्हें यह अहसास हुआ कि विदेश में काम करने के बजाय देश में ही काम करना बेहतर है, ताकि यहां भी दूसरों की सेवा की जा सके।

विदेश जाने से बचने के लिए…

उन्होंने बताया कि पहले तो वे कोई कार्ययोजना नहीं बना पाए। हर तरह की नौकरी बंद हो गई थी। उन्होंने कुछ खेत किराए पर लेकर खेती शुरू की, ताकि उन्हें म्यांमार वापस न जाना पड़े, क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। उन्होंने मुनाफे की संभावना और बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए बड़े पैमाने पर खेती करने का फैसला किया। अब तेरह एकड़ जमीन किराए पर लेकर खेती कर रहा हूं। सरकार की अन्य योजनाओं से भी लाभ मिला है।

ये चीजें उगाता हूं।

रूपेश के अनुसार, वह सीजन के हिसाब से बाजार में उपलब्ध फसलें उपलब्ध कराने का प्रयास करता है। शुरुआती फसलें लाभदायक होती हैं। बाद में बाजार की मांग कम हो जाती है और कीमत उचित मिलती है। अब वह करीब पांच एकड़ जमीन पर मटर की खेती करता है। छह एकड़ में टमाटर की खेती करता है। हजारीबाग के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत के राज्यों में भी मटर और टमाटर की आवक हो रही है। पहले चरण में मटर 250 रुपये प्रति किलोग्राम बिकी थी। वर्तमान में प्रति किलोग्राम कीमत 70 से 80 रुपये के बीच है। मटर को खेत में पहुंचा दिया जाता है और व्यवसायी उसे हटा देते हैं।

Success Story: अपने काम से संतुष्ट

रूपेश कुमार के अनुसार, खेती को व्यवसाय के रूप में देखा जाना चाहिए। उनकी जमीन पर आज 40 मजदूर रखे गए हैं। इसमें ज्यादातर महिलाएं कार्यरत हैं। गांव की महिलाएं गांव में ही काम करती हैं। नौकरी के लिए उन्हें शहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। उनका दावा है कि खेती से होने वाली कमाई की सही मात्रा का पता लगाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण है। हालाँकि, खेती ने उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है।

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