Success Story: लौकी, करेला समेत इन सब्जियों की खेती से बदली किसान की किस्मत, हो रही है बम्पर कमाई
Success Story: लौकी और करेला (Bottle gourd and bitter gourd) जैसी कई सब्जियों की मांग बाजारों में लगातार बनी हुई है। किसानों को लग रहा है कि इन सब्जियों को उगाना काफी फायदेमंद है। क्योंकि इन सब्जियों को उगाना कम खर्चीला है, कम समय लगता है और अच्छी कमाई होती है। वहीं, संकर किस्मों की पैदावार देशी लौकी और करेला से ज्यादा होती है। संकर और करेला उगाकर किसान अब अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं, क्योंकि ये सब्जियां देशी लौकी से ज्यादा लंबी और मोटी होती हैं।
सब्जी की खेती से होती है अच्छी खासी कमाई
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी इलाके में किसान अब करेला और लौकी की खेती ज्यादा कर रहे हैं। वे कई सालों से करेला और लौकी की खेती कर रहे हैं और खर्च के मुकाबले उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है। जैदपुर के किसान सतेंद्र कुमार ने परंपरागत फसलों के अलावा करेला और लौकी की खेती शुरू की और इससे उन्हें अच्छी खासी कमाई हो रही है। करीब एक एकड़ में वे लौकी और करेला उगा रहे हैं। इस खेती से उन्हें एक फसल पर एक से डेढ़ लाख रुपए तक की कमाई होती है।
Success Story: किसान ने उपज के बारे में बताया
इस बीच, इसे उगाने वाले किसान सतेंद्र कुमार ने मीडिया को बताया कि पहले वे धान, गेहूं और अन्य फसलें उगाते थे। किसान को कोई खास मुनाफा नहीं हो पाता था। फिर उन्होंने करेला और लौकी उगाना शुरू किया, जो किसानों के लिए लाभदायक है।
करेला और लौकी की पैदावार से अच्छी खासी आमदनी
आज किसान एक एकड़ जमीन पर करेला और लौकी उगा रहे हैं, जिसकी लागत करीब 10 से 12 हजार रुपए प्रति बीघा आती है। क्योंकि इसमें मजदूरी, बांस की डोरी, बीज, कीटनाशक आदि पर कुछ ज्यादा खर्च आता है। वहीं, एक फसल से करीब एक से डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा होता है। हमारी आमदनी भी अच्छी है, क्योंकि साल भर करेले और लौकी की जरूरत रहती है।
समझें कैसे तैयार होती है फसल
इसकी खेती के लिए सबसे पहले खेत की जुताई की जाती है। फिर जमीन को समतल किया जाता है और दो से तीन फीट की दूरी पर लौकी और करेले के बीज बोए जाते हैं। पेड़ के कुछ बड़े हो जाने पर उसे पानी दिया जाता है। फिर पूरे खेत का इस्तेमाल बांस, तार और धागे से स्ट्रेचर बनाने के लिए किया जाता है। स्ट्रेचर का इस्तेमाल पौधे को थामे रखने के लिए किया जाता है। इससे लौकी और करेले की अच्छी खासी पैदावार होती है। बीमारी की संभावना भी कम होती है। साथ ही, बीज बोने के कुछ 1.5 से 2 महीने के भीतर फसल उगने लगती है।