Organic Coal Factory : किसानों के लिए खुशखबरी, अब अपने कृषि अवशेष जलाने की नही पड़ेगी आवश्कयता, बदले में होगी जबरदस्त कमाई
Organic Coal Factory : बागपत जिले के किसानों के लिए खुशखबरी है। बागपत के एक किसान ने कृषि अपशिष्ट से जैविक कोयला बनाने की फैक्ट्री लगाई है, जिससे वहां के किसानों को अपनी बची हुई फसल को जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। नतीजतन, बागपत का जैविक कोयला (organic coal) अब देश-विदेश में मशहूर हो गया है। अगर वहां के भट्ठा मालिक इस जैविक कोयले का इस्तेमाल करना शुरू कर दें तो एनसीआर क्षेत्र में ईंट भट्टों (Brick kilns in NCR region) से होने वाले प्रदूषण में 90 फीसदी तक की कमी आ सकती है।
पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई दूसरा प्लांट नहीं है। यह फैक्ट्री कृषि अपशिष्ट से प्रतिदिन 100 टन जैविक कोयला बनाती है, जिसे निर्यात कर एनटीपीसी की अन्य इकाइयों को सप्लाई किया जाता है। इस खास उत्पाद के लिए तकनीकी शब्द पेलेट है।
कोटाना गांव के लुहारी गांव के किसान देवेंद्र सिंह ने कृषि अपशिष्ट का इस्तेमाल कर बागपत में एक ऐसी सुविधा स्थापित की है, जिससे प्रतिदिन 100 टन जैविक कोयला बनता है। देवेंद्र सिंह के मुताबिक, हमने मोदी जी के अनुरोध पर यह कदम उठाया, ताकि हम भी इस दिशा में कदम उठा सकें और किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकें।
आपको बता दें कि इस फैक्ट्री में किसानों के कृषि अवशेष प्रतिस्पर्धी दरों पर खरीदे जाते हैं, जहां उन्हें प्रदूषण रहित पदार्थ में संसाधित किया जाता है, जिसका उपयोग एनटीपीसी, ईंट भट्टों और अन्य निर्माताओं में किया जाता है। प्लांट के मालिक देवेंद्र सिंह के अनुसार, उनका उत्पाद कृषि अवशेषों से बनाया जाता है और इसे तकनीकी शब्दों में पेलेट या ब्रिकेट कहा जाता है। बड़े उद्यम, ईंट भट्टे और बिजली उत्पादन सुविधाएं इस वस्तु का उपयोग करती हैं।
यह उत्पाद बिल्कुल भी प्रदूषण नहीं करता है। किसान परिवार से आने वाले देवेंद्र सिंह के अनुसार, वे किसानों की आय में सुधार के लिए कदम उठाना चाहते थे, ताकि पर्यावरण को प्रदूषण का पूरा असर न झेलना पड़े। देवेंद्र सिंह का दावा है कि लोग उनके सामान का स्वागत कर रहे हैं। देश की बड़ी फैक्ट्रियों के अलावा, भूटान और बर्मा दो अन्य देश हैं, जहां उनका उत्पाद भेजा जाता है और इस बार सरकार इस सुविधा की स्थापना के लिए वित्तीय सब्सिडी दे रही है। MSME के तहत इस इकाई की स्थापना के लिए कई पुरस्कार हैं। इसके अलावा, किसान अपने कृषि अपशिष्ट को जलाने के बजाय अतिरिक्त आय के लिए बेच सकेंगे।