Cultivation of pigeon pea : अगर आप धान की खेती नहीं कर पाए हैं, तो करें यह फसल, होगी छप्परफाड़ कमाई
Cultivation of pigeon pea : किसानों ने मानसून की उम्मीद नहीं छोड़ी है। हालांकि, बारिश से जुड़ी लुका-छिपी का खेल अभी भी जारी है। सामान्य बारिश की तुलना में पलामू जिले में करीब 70 फीसदी कम बारिश हुई है। इस परिस्थिति के कारण किसान अभी तक धान की खेती (Paddy farming) नहीं कर पाए हैं। ऐसी परिस्थिति में किसान मध्यम आकार की जमीन पर अरहर की खेती कर पाते हैं। इसके लिए विशेष प्रबंधन की जरूरत होती है। अरहर की खेती अक्सर दोमट मिट्टी (Loamy soil) में होती है। हालांकि, किसान मध्यम आकार के रकबे में भी अरहर की खेती कर सकते हैं। क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र चियांकी के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि दोमट मिट्टी वाले खेतों में उत्पादकता कम होती है। इसके विपरीत, हाइब्रिड बीजों में उत्पादन की काफी संभावनाएं होती हैं। फिर भी, एक भी चीज का उत्पादन नहीं होता है। हालांकि, अगर किसानों ने धान की खेती शुरू नहीं की है। मध्यम आकार की जमीन पर भी अरहर की खेती की जा सकती है। किसान मेड़ बनाकर अरहर की खेती कर सकते हैं। अरहर की खेती के लिए किसानों को मध्यम आकार की जमीन पर मेड़ बनानी पड़ती है। जबकि बीज दर भी कम है। साथ ही, उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़िया है। किसान इसके लिए ट्रैक्टर से चलने वाले कृषि यंत्रों (tractor driven agricultural equipment) का इस्तेमाल कर सकते हैं। नतीजतन, 90 सेंटीमीटर की दूरी पर एक मेड़ बन जाती है। इससे किसान 25 सेंटीमीटर की दूरी पर अरहर की फसल उगा सकते हैं। बारिश से बीज खराब नहीं होते, यहां तक कि तेज बारिश में भी नहीं। बीज दर भी कम है।
प्रति एकड़ (Per Acre) पांच किलो बीज का इस्तेमाल
भारी बारिश के कारण अरहर में विल्ट रोग की समस्या होती है। मेड़ पर लगाए गए अरहर के पौधों को पानी नुकसान नहीं पहुंचाता। नतीजतन, फसल को नुकसान नहीं होता। इसमें प्रति एकड़ पांच किलो बीज का इस्तेमाल होता है। इससे सात या आठ क्विंटल उत्पादन होता है। अरहर की फसल उगाते समय बेहतर बीजों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है। इस फसल की शेल्फ लाइफ लंबी होती है। इसका दूसरा नाम क्रैश क्रॉप है। पलामू जिले में इसे वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (one district one product) के तहत बेचा जा रहा है। किसान इसके लिए बिरसा अरहर 2, आईपीए 203 चुन सकते हैं। इससे उच्च गुणवत्ता वाली उपज मिलती है।
सत्तर हज़ार रुपए तक की कमाई (Earning up to seventy thousand rupees)
किसानों द्वारा छिंटा तकनीक (splinter technique) का उपयोग करके अरहर की खेती की जाती है। जब बीज की मात्रा अधिक होती है। छिंटा तकनीक के लिए बीज की दर 8 किलोग्राम प्रति एकड़ है। वहीं, इस रणनीति में प्रति एकड़ 5 किलोग्राम बीज का उपयोग किया जाता है। इससे किसान एक एकड़ से साठ से सत्तर हज़ार रुपए तक का मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इसकी लागत प्रति एकड़ 12,000 से 15,000 डॉलर (Cost: $12,000 to $15,000 per acre) के बीच होती है।